जावेद अख्तर द्वार विमोचन
द क्लब, जूहू मुंबई में आयोजित कार्यक्रम प्रसिद्ध शायर व् गीतकार मज़रुह सुल्तानपुरी जिनका पूरी नाम 'असरार उल हसन ख़ान' था।
मजरुह की कलम की स्याही नज्मों और ग़ज़लों के रूप में जब लोगों तक पहुंची तो उर्दू शायरी को नई ऊंचाई तो मिली ही साथ ही उन्होंने रूमानियत को भी नया रंग और ताजगी दी।
कहते हैं फिल्मों में गीत लेखन के लिये मज़रुह सुल्तानपूरी को ज़िगर मुरादाबादी ने बड़ी मुश्किल से तैयार किया था।
उन्हें बतौर शायर अपनी पहचान ज्यादा प्रिय थी। आजादी मिलने से दो साल पहले वे एक मुशायरे में हिस्सा लेने बम्बई गए थे
और तब उस समय के मशहूर फिल्म-निर्माता कारदार ने उन्हें अपनी नई फिल्म शाहजहां के लिए गीत लिखने का अवसर दिया था। उनका चुनाव एक प्रतियोगिता के द्वारा किया गया था।
इस फिल्म के गीत प्रसिद्ध गायक कुंदन लाल सहगळ ने गाए थे। ये गीत थे-ग़म दिए मुस्तकिल और जब दिल ही टूट गया जो आज भी बहुत लोकप्रिय हैं। इनके संगीतकार नौशाद थे।
प्रसिद्ध बॉलीवुड गीतकार विजय अकेला ने महशूर गीतकार शायर के फ़िल्मी गीतों के खुबसुरत गुलदस्तों में पिरोकर सन उन्नीस सौ छाछठ में आयी
फिल्म ममता के सुपरहिट सॉंग “रहे न रहे हम महका करेंगे” शीर्षक से एक किताब का लेखन किया ये सॉंग रोशन जी के
संगीत निर्देशन में प्रसिद्ध गायिका लता मंगेशकर,सुमन कल्यानपुर और मोहमद रफ़ी साहेब की आवाज़ राग पहाड़ी में रिकॉर्ड किया गया था
“रहे ना रहे हम महका करेंगे” किताब का बुक लॉन्च हुआ इस किताब को विजय अकेला ने अपने कलम से मजरूह सुलात्न्पुरी जी को जिवंत कर दिया
मजरुह सुल्तानपुरी के गीतों पर आधारित है ड्रीम बोट इंटरटेनमेंट के मैनेजिंग डायरेक्टर आदित्य कुमार ने इस कार्यक्रम के निर्माता के साथ-साथ आयोजनकर्ता भी हैं
प्रसिद्ध शास्त्रीय कथक नृत्यांगना सुनैना दुबे द्वारा विशेष नृत्य प्रदर्शन किया सभी आगंतुकों का मन मोह लिया और सारा प्रांगण आकाश में तारे की तरह चमक रहा था।
और इस किताब का विमोचन प्रसिद्ध गीतकार-संवाद लेखक जावेद अख्तर जी ने किया
इस कार्यक्रम में उपस्तिथ मेहमान शबाना आजमी, संगीतकार ललित पंडित,गायक शैलेंद्र सिंह, कमलजीत,
कविता सेठ,गायिका मधुश्री संगीतकार संजीव दर्शन और युवा गायक जान कुमार सानू, श्री अनिल मुरारका उपस्थित थे।
फिल्म्स टुडे पत्रिका के प्रबंध निदेशक राजेश श्रीवास्तव और लीड इंडिया टीवी के प्रबंध निदेशक साहिल श्रीवास्तव विशिष्ट अतिथि थे।
इस शो के पीछे आदित्य कुमार को इस तरह के एक अद्भुत और क्लासिक कार्यक्रम के आयोजन के लिए तैयार किया जाना है,
जिसे आने वाले समय में इतिहास में याद किया जाएगा
आइये मजरूह सुल्तानपुरी जी फ़िल्मी जीवन की इस यात्रा पर आपको लिए चलते हैं
पहले गीतकार थे, जिन्हें दादासाहब फाल्के मिला उन्होंने पचास से ज्यादा सालों तक हिंदी फिल्मों के लिए गीत लिखे।
जिन फिल्मों के लिए आपने गीत लिखे उनमें से कुछ के नाम हैं-सी.आई.डी.,
चलती का नाम गाड़ी, नौ-दो ग्यारह, तीसरी मंज़िल, पेइंग गेस्ट, काला पानी, तुम सा नहीं देखा, दिल देके देखो, दिल्ली का ठग, इत्यादि।
पंडित नेहरू की नीतियों के खिलाफ एक जोशीली कविता लिखने के कारण मजरूह सुल्तानपुरी को सवा साल जेल में रहना पड़ा।
1994 में उन्हें फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरुष्कार से सम्मानित किया गया।
इससे पूर्व 1980 में उन्हें ग़ालिब एवार्ड और 1992 में इकबाल एवार्ड प्राप्त हुए थे।
मजरुह और नासीर हुसैन ने पहली बार फिल्म पेइंग गेस्ट पर सहयोग किया,
जिसे नासीर ने लिखा था। नासीर के निदेशक और बाद में निर्माता बनने के बाद वे कई फिल्मों व्में सहयोग करने गए,
जिनमें से सभी के पास बड़ी हिट थीं और कुछ महारूह के सबसे यादगार काम हैं: तुमसा नहीं देखा ,दिल देके देखो ,फिर वोही दिल लया हुन , तीसरी मंजिल ,
बहार के सपने ,प्यार का मौसम , कारवां (गीत पिया तू अब टू अजा) , यादों की बारात , हम किसी से कम नहीं ,
ज़मान को दीखाना है , कयामत से कयामत तक , जो जीता वोही सिकंदर ,
अकेले हम अकेले तुम , कभी हाँ कभी ना वे जीवन के अंत तक फिल्मों से जुड़े रहे।